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सुबह का वक्त था।
सूरज निकलने ही वाला था…
हवा में शांति, पक्षियों की हल्की चहचहाहट,
और नदी का धीमा-सा संगीत।
उसी सुकून भरे पल में,
रोहन की नजर नदी किनारे पड़े एक विशाल पत्थर पर पड़ी।
दिल एकदम ठहर गया।
जैसे भीतर से कोई आवाज़ आई—
“रोहन, इस पत्थर को हटाओ।”
वो चौंक गया।
पत्थर इतना बड़ा कि हिलना भी मुश्किल।
पर दिल में वही भरोसा…
“शायद परमेश्वर यही चाहते हैं कि मैं इस चुनौती को उठाऊँ।”
🗓️ और फिर शुरू हुआ एक सफ़र…
अगले दिन से रोज़ वही रूटीन—
दोनों हाथों से जोर…
पैरों से ज़मीन खरोंचते हुए…
लेकिन पत्थर अपनी जगह से एक इंच भी नहीं हिलता।
दिन गुज़रे… हफ्ते बीते… महीने निकल गए।
लोग हँसते हुए कहते,
“अरे रोहन! ये पत्थर कभी नहीं हिलेगा!”
लेकिन उसका जवाब हमेशा एक था—
“अगर परमेश्वर ने कहा है… तो एक उद्देश्य जरूर है।”
🔥 एक दिन रोहन टूट गया…
गर्म मौसम, पसीना, थकान,
हाथों में छाले… और दिल में भारीपन।
रोहन वहीं बैठ गया और फूट-फूट कर रो पड़ा—
“प्रभु, मैं कोशिश करता रहा…
पर पत्थर नहीं हिला।
क्या मैं असफल हूँ?”
तभी हवा में एक कोमल आवाज़…
ऐसी जिसे कान नहीं, दिल सुनता है—
“रोहन… मैंने तुझसे पत्थर को हिलाने को नहीं कहा था।
मैंने सिर्फ कहा था — हटाओ।”
रोहन हैरान।
“लेकिन मैं महीनों से कोशिश कर रहा था, प्रभु!”
और तब यीशु बोले—
“क्या तुझे पता है, इन महीनों में क्या बदला?”
रोहन ने अपने हाथ देखे—
अब मजबूत थे।
कंधे चौड़े हो चुके थे।
सहनशक्ति बढ़ चुकी थी।
और सबसे महत्वपूर्ण… विश्वास गहरा हो गया था।
“रोहन… पत्थर हटाना मेरा काम था।
मजबूत बनना तेरा।”
उसकी आँखों से फिर आँसू बहे,
लेकिन इस बार — कृतज्ञता के आँसू।
उसे यशायाह 41:10 याद आया—
✨ “मत डर, क्योंकि मैं तेरे संग हूँ…
मैं तुझे दृढ़ करूँगा और सहायता करूँगा।”
उसे समझ आ गया—
वो हार नहीं रहा था।
वो तराशा जा रहा था।
💫 कहानी का सार
कभी-कभी हमारी जिंदगी में भी
ऐसे ही “पत्थर” आते हैं—
जिन्हें हम चाहे जितना धक्का दें…
वो हिलते ही नहीं।
पर असल में…
समस्या हमारा दुश्मन नहीं होती,
वही समस्या हमारी कसरत होती है।
यीशु हमें मजबूत बना रहे होते हैं।
पत्थर हिलाना उनका काम है।
मजबूत बनना हमारा।
❤️ अगर यह कहानी आपके दिल को छू गई,
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Thank you!
May God bless you ✨
Stay tuned, stay blessed!
