🔴 कांकेर हिंसा की पूरी सच्चाई: PESA Act, दफ़्न विवाद और बाइबल का संदेश
18 दिसंबर, दोपहर करीब 11–12 बजे।
अचानक चीखें गूंजने लगीं।
आग की लपटें उठने लगीं।
सड़क पर खून बहने लगा।
दो चर्च जल चुके थे।
पुलिस पर पत्थर चल रहे थे।
ASP समेत 20 से ज़्यादा जवान घायल हो चुके थे।
ये कोई फिल्म का सीन नहीं था।
ये थी छत्तीसगढ़ के कांकेर ज़िले की सच्ची और डरावनी हकीकत।
और सबसे हैरान करने वाली बात?
👉 ये सब शुरू हुआ… एक शव के अंतिम संस्कार से।
📍 घटना की शुरुआत कहाँ से हुई?
यह मामला शुरू होता है
छत्तीसगढ़ के कांकेर जिले,
अंतागढ़ तहसील,
आमाबेड़ा थाना क्षेत्र,
बड़े तेवड़ा गांव से।
गांव के सरपंच हैं — रजमन सलाम।
उनके पिता चमरा राम सलाम की
15 दिसंबर को बीमारी के चलते अस्पताल में मृत्यु हो गई।
रजमन सलाम और उनका परिवार
मसीही (ईसाई) विश्वास अपना चुका था।
इसलिए उन्होंने अपने पिता का
मसीही रीति से अंतिम संस्कार किया
और अपनी निजी ज़मीन पर दफ़्न कर दिया।
👉 यहीं से विवाद शुरू हुआ।
🌿 आदिवासी समुदाय का विरोध क्यों हुआ?
गांव के आदिवासी समुदाय ने कड़ा विरोध किया।
उनका कहना था:
- हमारी परंपरा में दाह-संस्कार (जलाना) होता है
- दफ़्न करना हमारी संस्कृति में नहीं है
- गांव के नियमों के अनुसार
- ग्राम सभा की अनुमति ज़रूरी है
कुछ लोगों का यह भी दावा था कि
जिस ज़मीन पर शव दफ़्न किया गया,
वह गांव के स्थानीय देवता से जुड़ी पवित्र भूमि है।
👉 उनके अनुसार:
- गांव की पवित्रता खतरे में पड़ती है
- सामाजिक संतुलन बिगड़ता है
- आदिवासी पहचान को नुकसान होता है
कुछ ग्रामीणों की मान्यता है कि
गांव में शव दफ़्न होने से
बीमारियां, दुर्घटनाएं और अनहोनी घटनाएं होती हैं।
✝️ मसीही समुदाय का पक्ष क्या था?
मसीही समुदाय का कहना था:
- ज़मीन निजी थी, गांव की नहीं
- भारतीय संविधान धार्मिक स्वतंत्रता देता है
- अपने विश्वास के अनुसार अंतिम संस्कार करना हमारा अधिकार है
लेकिन विवाद इतना बढ़ा कि
ग्रामीणों ने शव निकालने की मांग कर दी।
👉 PESA Act 1996 का हवाला दिया गया
और कहा गया कि
ग्राम सभा की सहमति के बिना गांव में दफ़्न नहीं हो सकता।
⚖️ पुलिस और प्रशासन ने क्या किया?
दो दिन तक प्रदर्शन चला।
स्थिति लगातार बिगड़ती गई।
मीटिंग्स हुईं, लेकिन समाधान नहीं निकला।
इस बीच मसीही पक्ष ने
भीम आर्मी के कुछ सदस्यों को बुला लिया,
जिससे तनाव और बढ़ गया।
हालात बिगड़ते देख
कार्यकारी मजिस्ट्रेट ने 18 दिसंबर को आदेश दिया
कि शव को कब्र से निकालकर
गांव से बाहर ले जाया जाए।
👉 भारी पुलिस सुरक्षा में शव निकाला गया
और पोस्टमॉर्टम के लिए रायपुर भेजा गया।
🔥 इसके बाद हिंसा क्यों भड़की?
शव हट जाने के बाद भी
गुस्सा शांत नहीं हुआ।
देखते ही देखते
करीब 3000 लोगों की भीड़ आमाबेड़ा पहुंच गई।
👉 परिणाम:
- सरपंच के घर में तोड़फोड़
- दो चर्च जला दिए गए
- पुलिस पर पथराव
- ASP आशीष बंछोर समेत 20+ जवान घायल
स्थिति काबू में लाने के लिए
धारा 144 लागू की गई
और गांव को सील कर दिया गया।
❗ क्या ये पहली घटना है? नहीं।
ये कोई अकेली घटना नहीं है।
📊 आंकड़े बताते हैं:
पिछले 2 साल मेंबस्तर और कांकेर में
👉 350 से ज़्यादा दफ़्न विवाद
2025 (जनवरी–जुलाई)
👉 334 हिंसा की घटनाएं
पूरे साल 2025
👉 579 मामले दर्ज
👉 United Christian Forum के अनुसार
2025 में 23 दफ़्न विवाद,
जिनमें से ज़्यादातर छत्तीसगढ़ में।
📜 PESA Act 1996 और बड़ा सवाल
PESA Act (Panchayats Extension to Scheduled Areas Act, 1996)
आदिवासी क्षेत्रों में ग्राम सभा को
कई अधिकार देता है।
लेकिन सवाल उठता है:
क्या ग्राम सभा का फैसलासंविधान से ऊपर हो सकता है?
क्या धार्मिक स्वतंत्रता सीमित की जा सकती है?
क्या सुप्रीम कोर्ट भी असहाय है?
जनवरी 2025 में
सुप्रीम कोर्ट का फैसला भी बंटा हुआ रहा।
🤔 असली लड़ाई क्या है?
ये लड़ाई सिर्फ—
❌ आदिवासी बनाम मसीही
❌ दफ़्न बनाम जलाने की
नहीं है।
👉 ये लड़ाई है:
- पहचान की
- डर की
- संवाद की कमी की
- और भड़काने वाले तत्वों की
हिंसा में:
- पुलिस घायल हुई
- चर्च जले
- घर टूटे
- दोनों पक्षों को नुकसान हुआ
🕊️ समाधान क्या हो सकता है?
- गांव स्तर पर न्यूट्रल कब्रिस्तान
- प्रशासन द्वारा संवाद
- कानून का समान रूप से पालन
- हिंसा की जगह बातचीत
भारत की ताकत
👉 विविधता में है, टकराव में नहीं।
📖 बाइबल हमें क्या सिखाती है?
“जितना तुम्हारे वश में हो,
सब मनुष्यों के साथ मेल-मिलाप से रहो।”
(रोमियों 12:18)
“धन्य हैं वे जो मेल कराने वाले हैं।”
(मत्ती 5:9)
“धन्य हैं वे जो मेरे नाम के कारण सताए जाते हैं,
और जो अंत तक धीरज धरेगा उसी का उद्धार होगा।”
(मत्ती 5:10–11 | मत्ती 24:13)
मसीही विश्वास
हिंसा में नहीं,
धैर्य, क्षमा और प्रेम में है।
🙏 अंत में प्रार्थना
कांकेर में शांति लौटे।
घायलों को चंगाई मिले।
दिलों से नफ़रत हटे।
और प्रेम जीत जाए।
यीशु मसीह के नाम में। आमीन।
