🎄 क्या क्रिसमस मनाना अब “अपराध” है?
VHP के बहिष्कार आह्वान, संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता पर बड़ा सवाल
भारत हमेशा से एक बहुधार्मिक, बहुसांस्कृतिक देश रहा है।
यहाँ दीपावली, ईद, गुरुपर्व और क्रिसमस — सभी त्योहार न सिर्फ़ संबंधित समुदाय, बल्कि समाज के अन्य वर्ग भी मिल-जुलकर मनाते आए हैं।
लेकिन 13 दिसंबर को विश्व हिंदू परिषद (VHP) की ओर से जारी एक अपील ने इसी साझा संस्कृति पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं।
📌 VHP की अपील क्या है?
VHP के इंद्रप्रस्थ प्रांत मंत्री सुरेंद्र गुप्ता ने हिंदुओं से अपील की कि वे:
- क्रिसमस समारोहों का बहिष्कार करें
- ऐसे दुकानदारों, मॉल और स्कूलों से दूरी बनाएँ
- जो क्रिसमस मनाते हैं या सजावट करते हैं
- यहाँ तक कि हिंदू-स्वामित्व वाली दुकानों को भी चेताया गया
- जो “मेरी क्रिसमस” जैसे संदेश लगाती हैं
VHP का दावा है कि यह कदम “सांस्कृतिक सजगता” के लिए ज़रूरी है।
🗣️ “धर्म परिवर्तन रोकना उद्देश्य है” – VHP का तर्क
सुरेंद्र गुप्ता का कहना है कि:
“ईसाई मिशनरी हमारी उदार भावना का दुरुपयोग कर धर्म परिवर्तन कराते हैं।”
उन्होंने यह भी कहा कि जब तक चर्च सार्वजनिक रूप से यह घोषणा नहीं करते कि वे भारत में धर्म परिवर्तन बंद करेंगे, तब तक उन्हें “खुले रूप से” क्रिसमस मनाने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए।
यही नहीं, उन्होंने दुकानों और स्कूलों को निशाना बनाए जाने को भी सही ठहराते हुए कहा:
“हमें अपने समाज की रक्षा करने का अधिकार है।”
⚖️ क्या यह संविधान के खिलाफ़ है?
वरिष्ठ सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता शहरुख़ आलम ने इस अपील की कड़ी आलोचना की।
उनके अनुसार:
- यह सिर्फ़ “अपील” नहीं, बल्कि सामाजिक बहिष्कार का रूप ले सकती है
- यह संविधान की प्रस्तावना में निहित “भाईचारे” (Fraternity) के सिद्धांत के खिलाफ़ है
- जब कोई शक्तिशाली संगठन ऐसी बात कहता है, तो उसका असर ज़मीनी स्तर पर दबाव और डर के रूप में पड़ता है
उन्होंने साफ़ कहा:
“जब ऐसी अपीलें निगरानी या हिंसा से जुड़ जाती हैं, तब वे आपराधिक हो जाती हैं।”
📚 इतिहास क्या कहता है?
इतिहासकार और दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर शम्सुल इस्लाम ने VHP के अतीत की याद दिलाई।
उन्होंने 1997 की डांग्स (गुजरात) घटना का ज़िक्र किया, जहाँ:
- क्रिसमस समारोह रोके गए
- चर्च जलाए गए
- ईसाई स्कूलों पर कब्ज़ा किया गया
उन्होंने एक अहम सवाल उठाया:
“जब करोड़ों भारतीय ईसाई-बहुल देशों में अपने मंदिर बनाकर स्वतंत्र रूप से त्योहार मनाते हैं,
तो भारत में अल्पसंख्यकों से यह अधिकार क्यों छीना जा रहा है?”
📊 ज़मीनी हकीकत: बढ़ती हिंसा
United Christian Forum (UCF) के आँकड़े चिंताजनक हैं:
- 2014: 139 घटनाएँ
- 2024: 834 घटनाएँ
पिछले 10 वर्षों में:
➡️ 4,959 हिंसक घटनाएँ ईसाइयों के खिलाफ़ दर्ज
29 नवंबर को:
- 3,500 से अधिक ईसाई संसद के पास एकत्र हुए
- सरकार की निष्क्रियता के खिलाफ़ शांतिपूर्ण विरोध किया
👥 भारत में ईसाई कितने हैं?
- कुल आबादी का लगभग 2.3%
- संख्या: लगभग 2.78 करोड़ (2011 जनगणना)
- सिर्फ़ दिल्ली में: 1.5 लाख से अधिक
यानि एक छोटा अल्पसंख्यक समुदाय,
जिसे अब त्योहार मनाने पर भी सफ़ाई देनी पड़ रही है।
🤔 असली सवाल
- क्या किसी त्योहार को मनाना धर्म परिवर्तन है?
- क्या “संस्कृति की रक्षा” के नाम पर
- दुकान, स्कूल और सामाजिक जीवन नियंत्रित किया जा सकता है?
- क्या भारत की पहचान डर से बनी एकरूपता होगी
- या सम्मान से भरी विविधता?
✍️ निष्कर्ष
VHP भले ही इसे “शांत सांस्कृतिक जागरण” कहे,
लेकिन आलोचकों का मानना है कि ऐसी अपीलें:
- समाज को धार्मिक खाँचों में बाँटती हैं
- अल्पसंख्यकों में असुरक्षा बढ़ाती हैं
- और भारत की उस आत्मा को चोट पहुँचाती हैं
- जो “सर्व धर्म समभाव” पर खड़ी है
भारत का संविधान किसी एक संस्कृति की नहीं,
सबकी आज़ादी की गारंटी देता है।
✨ आपकी राय क्या है?
क्या त्योहार मनाना अपराध होना चाहिए?
या भारत की ताकत उसकी विविधता में ही है?
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