Are Christians ALLOWED to CURSE? & ROASTING !!!

गाली, अपशब्द और रोस्टिंग: क्या बाइबल इसकी इजाज़त देती है?

Are Christians ALLOWED to CURSE? & ROASTING !!! | PANKAJ WTL



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परिचय

आज की दुनिया में अगर आप गाली नहीं देते, तो आपको 'बोरिंग' कहा जाता है।
अगर आप किसी को नीचा दिखा कर हँसते नहीं, तो आप 'बैकग्राउंड कैरेक्टर' हैं।
और अगर आप शांति से जवाब देते हैं, तो लोग आपको 'कमज़ोर' समझते हैं।

लेकिन एक सवाल जो हर मसीही को खुद से पूछना चाहिए:
"क्या यीशु मसीह भी ऐसी भाषा का इस्तेमाल करते?"

चलिए बाइबल के प्रकाश में इस सवाल की गहराई में चलते हैं।


1. हमारे शब्द हमारे दिल को प्रकट करते हैं

"क्योंकि जो मन में भरा है, वही मुंह से निकलता है।"
– मत्ती 12:34

गाली देना सिर्फ ज़ुबान का मामला नहीं है, ये हमारे अंदरूनी स्वभाव का आइना है।
जो इंसान क्रोध, कटुता और तुच्छता से भरा होता है, वही अपशब्दों का प्रयोग करता है।

मसीहियों के लिए यह चेतावनी है: अपनी ज़ुबान नहीं, अपने दिल को बदलिए।


2. गंदी बातें मसीहियों को शोभा नहीं देतीं

"तुम्हारे बीच अश्लील बातें, मूर्खता, या हल्की फुल्की बातों का नाम तक न हो..."
– इफिसियों 5:4

"ये तो सिर्फ मज़ाक था..."
"मैं तो एंटरटेनमेंट कर रहा था..."
यही सोच आज हमें धीरे-धीरे आत्मिक रूप से कुंद कर रही है।

बाइबल साफ़ कहती है – ऐसे शब्द मसीही जीवन से बिलकुल मेल नहीं खाते।


3. गाली देना पाप है, 'स्टाइल' नहीं

"अब तुम ये सब बातें छोड़ दो – क्रोध, रोष, बुराई, निंदा और अपने मुंह से गंदी बातें न निकालो।"
– कुलुस्सियों 3:8

आज सोशल मीडिया पर गाली देना ट्रेंड बन चुका है।
रोस्टिंग कल्चर में अपशब्दों को "कॉमेडी" का नाम दे दिया गया है।

पर बाइबल हमें याद दिलाती है –
"जो प्रभु से प्रेम करता है, वह अपनी ज़ुबान पर लगाम लगाता है।"


4. यीशु ने कभी गाली नहीं दी — और हम उसके अनुयायी हैं

यीशु ने जब उन्हें चिढ़ाया गया, तब भी जवाब में कभी अपशब्द नहीं बोले।
जब उन पर थूका गया, तो भी उन्होंने आशीर्वाद दिया।

अगर हम मसीह के अनुयायी हैं, तो हमारी भाषा में भी उसका प्रतिबिंब दिखना चाहिए।


5. शब्दों में मृत्यु और जीवन की शक्ति है

"जीवन और मृत्यु की शक्ति जीभ में होती है..."
– नीतिवचन 18:21

आपका एक शब्द किसी को तोड़ भी सकता है या उभार भी सकता है।
गाली देना सिर्फ खुद को गंदा करना नहीं है — ये दूसरों पर भी आत्मिक घाव करता है।


6. मसीही रोस्टिंग नहीं, प्रार्थना करते हैं

"अपने बैरियों से प्रेम रखो, और जो तुम्हें सताते हैं उनके लिए प्रार्थना करो।"
– मत्ती 5:44

अगर कोई आपको अपशब्द कहता है, तो आप क्या करते हैं?
क्या आप भी वैसा ही जवाब देते हैं — या प्रार्थना करते हैं?

मसीहियों को "वापस उसी भाषा में जवाब देने" की नहीं,
बल्कि प्रेम से जीतने की बुलाहट मिली है।


7. सच्चे मसीही की पहचान – उसकी वाणी से होती है

"तुम्हारी वाणी सदा अनुग्रह सहित और नमक की तरह चटपटी हो, कि तुम हर एक को उचित रीति से उत्तर दे सको।"
– कुलुस्सियों 4:6

हमारे शब्दों में अनुग्रह होना चाहिए, रोष नहीं।
हमारी बातचीत में आत्मा का फल झलकना चाहिए — जैसे दया, नम्रता और संयम।


निष्कर्ष:

इस संसार ने गाली को "स्वतंत्रता", अपमान को "कॉमेडी", और रोस्टिंग को "स्टाइल" बना दिया है।

पर मसीहियों को इस संसार के रंग में रंगने नहीं बुलाया गया,
बल्कि प्रभु की पवित्रता में चमकने के लिए चुना गया है।

तो अगली बार जब ज़ुबान से कुछ निकलने लगे —
सोचिए: क्या यीशु ऐसा बोलते?


✨ एक अंतिम विचार:

दुनिया कहती है – बोलो जैसे मन करे।
पर यीशु कहते हैं – बोलो जैसे आत्मा निर्देश दे।


अगर ये ब्लॉग आपको छू गया हो, तो इसे दूसरों के साथ शेयर कीजिए।
शायद किसी को ये याद दिलाने की ज़रूरत है कि हमारी जुबान से ज़्यादा ताकतवर और कुछ नहीं।

WAY TRUTH LIFE – जहां हर बात बाइबल से।


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